REET L1&L2 Teaching Method (HIndi,English,Science,Maths,SST) in Hindi

इस सामग्री में शिक्षण विधियों (Teaching Methods) और मापन एवं मूल्यांकन (Measurement and Evaluation) से संबंधित विस्तृत जानकारी शामिल है।

REET L1&L2 Teaching Method (HIndi,English,Science,Maths,SST) 2026


1. पाठ योजना (Lesson Plan)

पाठ-योजना की अवधारणा और हरबर्ट (Herbart)

  • पाठ-योजना का सर्वप्रथम विचार गेस्टाल्टवादी संज्ञानवादी द्वारा दिया गया।
  • हरबर्ट से पूर्व शिक्षा की अवधारणा थी कि शिक्षक के पास जो ज्ञान व अनुभव है, वह बालकों तक पहुँचा देना ही शिक्षा है।
  • हरबर्ट इस विचारधारा का खण्डन करता है। उनका मानना है कि बालकों तक ज्ञान पहुँचाना ही शिक्षा नहीं है; जब शिक्षार्थी उस ज्ञान को अपने व्यवहार में ले आते हैं तो वह शिक्षा कहलाती है।
  • शिक्षा की हरबर्ट की परिभाषा: "बालकों को विचार देकर विचारों का व्यवहारीकरण कर देना ही शिक्षा है"।
  • विचार के सोपान / चरण: (1) निरीक्षण, (2) आज्ञा, (3) मांग, (4) क्रिया, (5) विचार।
  • विचार पहुँचाने का क्रम: (1) स्पष्टता, (2) व्यवस्था, (3) सम्बन्ध, (4) विधी।
  • हरबर्ट की प्रारम्भिक पञ्चपदी: (i) पूर्व ज्ञान (प्रस्तावना), (ii) नवीन ज्ञान (प्रस्तुतीकरण), (iii) व्यवस्था, (iv) तुलना, (v) सामान्यीकरण।
  • हरबर्ट की वर्तमान की पञ्चपदी: (1) प्रस्तावना, (2) प्रस्तुतीकरण, (3) तुलना, (4) सामान्यीकरण, (5) प्रयोग।
  • ध्यान दें: प्रस्तावना व प्रस्तुतीकरण पद हरबर्ट के शिष्य जीलर/प्सलर ने हरबर्ट की उपस्थिति में दिए।
  • हरबर्ट की पाठ्योजना जर्मन प्रणाली पर आधारित है।

हरबर्ट की पाठ्योजना की आलोचनाएँ

  • स्मृति पर आधारित है।
  • बोध निष्क्रिय रहता है।
  • शिक्षक की स्वतन्त्रता का हनन होता है।
  • शिक्षक यन्त्रवत (mechanical) होता है।
  • इसमें आगमन निगमन विधि का समावेश होता है।

ब्लुम की अवधारणा (Bloom's Taxonomy)

उद्देश्य और मूल्यांकन

  • उद्देश्य: व्यवहार में होने वाला अपेक्षित परिवर्तन
  • मूल्याकंन: उद्देश्य की सीमा जाँचने की प्रक्रिया।
  • उद्देश्य वर्गीकरण (6 भाग प्रत्येक): संज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक।

उद्देश्य के प्रकार

  1. शैक्षिक उद्देश्य / सामान्य उद्देश्य: सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को निर्धारित करके बनाये गए उद्देश्य (जैसे: हिन्दी का पाठ्यक्रम)। इसका निर्माण एक बार होता है।
  2. शिक्षण उद्देश्य / विशिष्ट उद्देश्य / प्राप्य उद्देश्य: किसी एक पाठ या भाग को निर्धारित करके बनाये जाते हैं (जैसे: पाठ-1 छोटा जादूगर)। ये बार-बार बनाये जाते हैं।

सम्बन्ध:

  • मूल्याकंन का सीधा सम्बन्ध शैक्षिक उद्देश्य से होता है।
  • पाठ-योजना में मूल्यांकन का सम्बन्ध शिक्षण उद्देश्य से होता है।

शिक्षण उद्देश्य और व्यवहारगत परिवर्तन

क्रमांकशिक्षण उद्देश्यव्यवहारगत परिवर्तन
1.ज्ञानप्रत्यास्मरण (स्मृति में याद), प्रत्यभिज्ञान (पहचान), पुनः स्मरण, पहचान, तथ्य, सिद्धान्त, नियम, परिभाषा बताना।
2.अवबोधअन्तर/समानता प्राप्त करना, तुलना, वर्गीकरण, अनुवाद, उदाहरण देना, त्रुटि सुधार करना, सही स्थिति का पता लगाना, अनुमान लगाना, स्वयं के शब्दों में परिभाषा देना।
3.ज्ञानोपयोग / अनुप्रयोगविश्लेषण, संश्लेषण, गणना करना, भविष्यवाणी करना, परिकल्पना का निर्माण करना, सुझाव देना, सावधानी बरतना, तर्क देना, हेर-फेर करना।
4.कौशलज्ञान का अधिक प्रयोग करने पर कौशल बन जाता है। प्रतिरूप बनाना, प्रयोगशाला की सामग्री सही स्थापित करना, मॉडल बनाना।
5.अभिरुचिअभिरूचि कौशल पर निर्भर करती है।
6.अभिवृतिअभिवृति का निर्माण अभिरूचि के आधार पर होता है।

उद्देश्य के स्तर (ब्लुम के अनुसार)

  1. याद रखना
  2. समझना
  3. आवेदन
  4. विश्लेषण
  5. संश्लेषण
  6. मूल्याकंन

पाठ-योजना का प्रारूप

मॉरीसन के अनुसार पाठ-योजना के चरण हैं: प्रस्तावना, प्रस्तुतीकरण, तुलना, सामान्यीकरण, प्रयोग।

पाठ-योजना के मुख्य भाग

  1. आवश्यक पूर्ति: कक्षा, विषय, प्रकरण, कालांश, समयावधि, दिनांक।
  2. श्यामपट्ट पर कार्य: करते समय शिक्षक बांयी से दांयी ओर बढ़ता है। शिक्षक अपनी स्थिति में परिवर्तन उद्दीपन परिवर्तन के लिए करता है। श्यामपट्ट को ऊपर से नीचे की तरफ साफ किया जाता है। श्यामपट्ट पर कार्य करते समय हाथ का कोण 45° का बनता है। श्यामपट्ट शिक्षक का परममित (permanent property) कहा जाता है। श्यामपट्ट की आकृति आयताकार होती है। श्यामपट्ट का सर्वप्रथम शैक्षणिक प्रयोग विलियम जेम्स ने किया।
  3. उद्देश्य का निर्माण: शिक्षण उद्देश्य (ज्ञान, अवबोध, ज्ञानोपयोग, कौशल, अभिरूचि, अभिवृति)।
  4. शिक्षण विधियाँ/प्रविधियों का चयन।
  5. सहायक सामग्री का चयन।
  6. पूर्वज्ञान: पूर्व ज्ञान को जाँचने की प्रक्रिया/व्यवहार को आयोजित करने की प्रक्रिया।
  7. प्रस्तावना: समय 5-7 मिनिट का होता है। प्रश्नों की संख्या 5-7 होती है। यदि कहानी, कविता या दृष्टान्त के द्वारा की जा रही है, तो कम से कम 3 प्रश्न पूछना अनिवार्य है।
    • गुण: पूर्व ज्ञान पर आधारित, क्रमबद्धता (सरल → कठिन), प्रसंगानुकुलता (विषय से जुड़ी), स्तरानुकूल, तारतम्यता, परिवर्तनशीलता।
  8. उद्देश्य कथन: प्रकरण लिखा जाएगा।
  9. प्रस्तुतीकरण: पाठ-योजना का मुख्य बिन्दु कहा जाता है। इसमें शिक्षण बिन्दु, अध्यापक क्रिया, छात्र क्रिया, विधि/प्रविधि, सहायक सामग्री, श्यामपट्ट शामिल होते हैं।
  10. बौद्ध/पूनरावर्ती प्रश्न
  11. मूल्याकंन: शिक्षण उद्देश्य की सीमा जाँचता है।
  12. गृहकार्य: पाठ की पुनरावृत्ति।

शिक्षण अधिगम सहायक - सामग्री (T.L.M.)

सहायक सामग्री का महत्व और उद्देश्य

  • परिभाषा: वह सामग्री जो शिक्षण के दौरान निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता प्रदान करे।
  • सहायक सामग्री बालकों के ज्ञान को प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर ले जाने में सहायता करती है।
  • यह ज्ञात से अज्ञात की ओर, स्थूल से सूक्ष्म की ओर, और सामान्य से विशिष्ट की ओर ले जाती है।
  • महत्व: जिज्ञासा उत्पन्न होती है, अनुभवों को गति मिलती है, विषय-वस्तु का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है, ज्ञान स्थायी होता है, शिक्षण बोधगम्य बनता है, तुलना शक्ति का विकास होता है, शक्ति व ऊर्जा को बचाती है, विचारों में प्रवाहत्मकता आती है, पाठ सरल व रोचक बनता है, बालक सक्रिय रहता है, विषय-वस्तु का विस्तार होता है, विषय के प्रति रूचि जाग्रत होती है।
  • उद्देश्य: पाठ को रोचक व आकर्षक बनाना, पाठ में स्पष्टता लाना, अवधान (ध्यान) की क्षमता बढ़ाना, क्रियाशीलता बढ़ाना, पाठ में सजीवता लाना, सीखने की गति में वृद्धि करना, अवलोकन शक्ति को मजबूत करना, कठिन विषय को सरल रूप देना, अमूर्त विषयों को मूर्त रूप देना, बालकों की अभिरुचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना, योग्यता के अनुसार शिक्षा देना।

सहायक सामग्री के गुण

  • उद्देश्य की प्राप्ति करने वाली होनी चाहिए।
  • कक्षा के अनुरूप होना चाहिए।
  • आकार, प्रभावशाली व अल्पलाघत (कम लागत) वाली होनी चाहिए।
  • अनुपयोगी सामग्री का उपयोग करना चाहिए।
  • उपयोग के पश्चात हटा देना चाहिए।
  • स्थिति अच्छी होनी चाहिए।
  • बहुउद्देश्य व आकर्षक/रोचक होनी चाहिए।
  • प्रयोग करते समय समय का ध्यान रखना चाहिए।

सहायक सामग्री के प्रकार

आधारप्रकारउदाहरण/विवरण
इन्द्रियों के आधार परश्रव्य सामग्री, दृश्य सामग्री, श्रव्यदृश्य सामग्रीसुनकर/देखकर अर्थ ग्रहण करना
प्रक्षेपण के आधार परप्रक्षेपित सामग्री, अप्रक्षेपित सामग्रीजिसका प्रक्षेपण हो (उदा. प्रोजेक्टर), जिसका प्रक्षेपण न हो (उदा. चार्ट, मॉडल)
तकनीकी के आधार परसाफ्टवेटर, हार्डवेयरछुआ नहीं जा सकता (उदा. सेटेलाइट), छुआ जा सकता है (उदा. रेडियो)

NCERT के आधार पर (6 प्रकार): ग्राफिक्स सामग्री, प्रदर्शन/डिस्प्ले सामग्री (उदा. श्यामपट्ट), प्रक्षेपित सामग्री (उदा. प्रोजेक्टर, स्लाइड), श्रव्य सामग्री (उदा. ग्रामोफोन, लिंग्वाफोन), त्रिययामी 3D सामग्री (उदा. वास्तविक सामग्री), प्रक्रिया सामग्री (उदा. भ्रमण, संग्रहालय)।

अन्य प्रकार: प्रिंट सहायक सामग्री (अखबार, किताब), इलेक्ट्रानिक सामग्री (कम्प्युटर, केलकुलेटर, स्मार्टफोन)।

दृश्य सामग्री का परीक्षण (प्रो. जे. जे. वेबर)

  • प्रो. जे. जे. वेबर के अनुसार, अनुभूतियाँ तीन प्रकार की होती हैं: दृश्य अनुभूतियाँ (40%), श्रव्य अनुभूतियाँ (25%), स्पर्श अनुभूतियाँ (17%)।
  • अधिगम में 85% इन्द्रियों का योगदान होता है।

विशिष्ट दृश्य सामग्रियाँ

सामग्रीविवरण
बुलेटिन बोर्डलकड़ी के सपाट गत्ते का बना। वेलवेट का लाल रंग का कपड़ा लगाया जाता है। सूचनाएँ दीर्घकालीन रहती हैं। विद्यालय स्तर पर सामान्य प्रयोग।
फ्लेनल बोर्ड/फलालीन बोर्डलकड़ी के खुरदरे गत्ते का बना। खादी का हरे रंग का कपड़ा लगाया जाता है। सूचनाएँ अल्पकालीन रहती हैं। कक्षा स्तर पर विशिष्ट प्रयोग।
फिल्म स्ट्रीक्टचौडाई 35 MMPF. पदार्थ - सेलुलॉज एसीटेट।
मॉडल (प्रतिरूप)वास्तविक वस्तु का मिलता-जुलता रूप। स्थिर मॉडल (जो गतिशील ना हो) और आस्थर मॉडल (जो गतिशील हो)।
प्रदर्शन सामग्रीचित्र, चार्ट, फोटो, मानचित्र, ग्लोब, फोटोग्राफी आदि।
प्रोजेक्टर (प्रक्षेपी सामग्री + दृश्य सामग्री)एक ऐसी सामग्री जिसमे आप एक छोटे रूप को बड़े रूप में देख सकते हैं।

प्रोजेक्टर के प्रकार:

  1. डायस्कॉप: उपनाम - जादू की लालटेन (मैजिक लैण्टर)। काँच की स्लाइड का प्रयोग। जिलेटिन नामक पदार्थ से साफ होता है। अन्धेरे की आवश्यकता अधिक।
  2. एप्पी स्कॉप: चित्र विस्तारक यंत्र। डायस्कॉप के समान कार्य करता है लेकिन काँच की स्लाइड का प्रयोग नहीं। अपारदर्शी प्रोजेक्टर। अन्धेरे की आवश्यकता अधिक।
  3. एप्पी डाय स्कॉप: एप्पिस्कोप + डॉयस्काप का संयोजन।
  4. ओ.एच.पी. (O.H.P.): ऑवर हैड प्रोजेक्टर। एक प्रकार का पारदर्शी प्रोजेक्टर है। प्लास्टिक/ट्रांसप्रेसी स्लाइड का प्रयोग।
  5. एल.सी.डी. (लाइट क्रिस्टल डिस्प्ले प्रोजेक्टर)।
  6. डी.एल.पी. (डिजीटल लाइट प्रोसेसिंग प्रोजेक्टर)।

वास्तविक पदार्थ:

  • रिआलीया: वह वास्तविक पदार्थ जो अपने वास्तविक स्वरूप में हो।
  • डायरेमा: कलाकृति के रूप में।

अन्य उपकरण: सर्च इंजन (w.w.w., गुगल, याहु), सेक्स टेंट (दो कोणों को मापने में उपयोगी), संग्रहालय, ई मेल (इलेक्ट्रानिक मेल), टेलनेट (एक से अधिक कम्प्युटर को जोड़कर प्रदर्शन), पुशनेट, युज नेट, चेट ग्रुप।

श्रव्य सामग्री (Auditory Aids)

  1. ग्रामोफोन: प्रयोग - संगीत व नृत्य की शिक्षा में। सुई का बाजा। जनक - "थॉमस आल्वा एडीसन"।
  2. लिग्वाफोन: ध्वनियाँ अस्थायी होती हैं, उन्हें हटाया जा सकता है। भाषा प्रयोगशाला में सर्वाधिक प्रयोग। भारत की सबसे बड़ी लिग्वालेब - दिल्ली; राज की सबसे बड़ी लिग्वालेब - जयपुर।
  3. सीता वाथ्य यंत्र (उपनाम - चुड़ी का बाजा)।
  4. रेडियो: जनक - मारकोनी। दूरस्थ शिक्षा का सशक्त माध्यम। कार्यक्रम का पुनः प्रसारण नहीं होता।
  5. टेप रिकार्डर: जनक - वाल्डेमर पाल्समैन। रेडियो की समय सीमा इसके द्वारा समाप्त की जा सकती है।
  6. वॉकर्मेन, स्पीकर।

श्रव्य दृश्य सामग्री (Audio-Visual Aids)

  1. टेलीविजन: जनक - जॉनी लॉग बेरार्ड। पुराना नाम दी टेलीपीजर्स। सर्वप्रथम कार्यक्रम - कठपुतली (नाम - "स्कीटी")।
  2. अन्य सामग्री: कठपुतली (लोकनृत्य), प्रजेंटेशन स्लाइड, दूरदर्शन, फिल्में, वृत्त चित्र (डाक्युमेन्ट्री फिल्म), लेपटॉप, टेबलेट, एनड्राइड मोबाइल, नाटक, अभिनय, ड्रामा, सैटेलाइट, इंटरनेट, यू-ट्यूब।
  • नोट: श्रव्य दृश्य सामग्री किसी भी टॉपिक को पढ़ाने में अधिक उपयोगी है।

सहायक सामग्री के प्रमुख सिद्धान्त

  1. प्रभाव-शिलता का सिद्धान्त: प्रतिपादन - एडगर डेल। इसमें ज्यामितीय आकृति का प्रयोग (शंकु / अनुभव शंकु) किया जाता है।
    • न्यून प्रभाव: शाब्दिक सामग्री (शब्द आते हैं)।
    • अधिक प्रभाव: अप्रक्षेपित सामग्री (चार्ट, मॉडल, बोर्ड)।
    • अधिक प्रभाव (अप्रक्षेपी से): प्रक्षेपी सामग्री (स्लाइड, प्रोजेक्टर)।
    • सर्वाधिक प्रभाव: प्रक्रिया सामग्री (भ्रमण, वृत्त चित्र)।
  2. अन्य सिद्धान्त: सक्रियता का सिद्धान्त, क्रियाशीलता का सिद्धान्त, विषयवस्तु स्पष्टता का सिद्धान्त, गतीशिलता का सिद्धान्त।

शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods)

1. आगमन विधि (Inductive Method)

  • जनक: अरस्तु (आगमनात्मक प्रणाली के जनक भी)।
  • प्रक्रिया: उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं, बालक उन्हें हल करते हुए नियम का निर्धारण करते हैं।
  • सोपान/चरण: (1) उदाहरण प्रस्तुत करना, (2) निरीक्षण करना, (3) नियम का निर्धारण करना, (4) प्रयोग/परीक्षण करना।
    • आगमन विधि के सभी सोपानों में बालक सक्रिय रहता है।
  • इस विधि को अपूर्ण विधि कहा जाता है।
  • शिक्षण सूत्र: उदाहरण → नियम; ज्ञात → अज्ञात; विशिष्ट → सामान्य; स्थूल → सूक्ष्म।
  • गुण: मनोवैज्ञानिक विधि, चिन्तन/मनन शक्तियों का विकास, खोज प्रवृत्ति का विकास, पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़‌ती है, प्रभावशाली शिक्षण, गणित/व्याकरण के लिए श्रेष्ठ विधि।
  • दोष: अपूर्ण विधि, समय व श्रम अधिक लगता है, बड़ी कक्षा के बालक कम रुचि रखते हैं, छोटी कक्षा के लिए अधिक उपयोगी, सभी स्थितियों में प्रयोग नहीं, पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण नहीं।
  • प्रर्वतक (नोट): पतञ्जाल।

2. निगमन विधि (Deductive Method)

  • जनक: प्लेटो (निगमनात्मक प्रणाली का जनक)।
  • प्रक्रिया: पहले नियम समझाए जाते हैं, तत्पश्चात उदाहरणों के माध्यम से विषय-वस्तु को जाना जाता है।
  • सोपान/चरण: (1) नियम प्रस्तुत करना, (2) नियम को स्पष्ट करना, (3) प्रयोग प्रदर्शन, (4) परीक्षण करना।
  • शिक्षण सूत्र: नियम → उदाहरण; सामान्य → विशिष्ट; सूक्ष्म → स्थूल; अज्ञात → ज्ञात।
  • सहायक विधियाँ: सूत्र विधि, पाठ्यपुस्तक प्रणाली।
  • गुण: तीव्र गति से विकसित होने वाली विधि, पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण हो जाता है, सभी स्तर पर प्रयोग संभव, यह एक पूर्ण विधि है।
  • दोष: अमनोवैज्ञानिक विधि, शिक्षक केन्द्रित है, बालकों में निरसता (निष्क्रियता) उत्पन्न करती है, केवल-बड़ी कक्षाओं के लिए उपयोगी, परम्परागत विधि।
  • प्रर्वतक (नोट): पाणिनि।

3. प्रयोजना/प्रोजेक्ट विधि (Project Method)

  • जनक: किलपेट्रीक।
  • व्यापक रूप/विचार प्रस्तुत: जॉन ड्यूवी।
  • प्रोजेक्ट शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग: स्टीवेशन।
  • विधि का प्रथम प्रयोग: रिचार्ड।
  • भारत में Project कार्य की झलक: 1937 में महात्मा गाँधी की बुनियादी शिक्षा में।
  • किलपेट्रिक की परिभाषा: "प्रोजेक्ट सोद्देश्यपूर्ण योजना है जिसे सलग्नता के साथ वातावरण में मन लगाकर पूरा किया जाता है"।
  • स्टीवेशन की परिभाषा: "प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है, जिसे स्वाभाविक परिस्थितियों में निष्पादित किया जाता है"।
  • बेलार्ड की परिभाषा: "प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक भाग है जिसे विद्यालय में लाया गया"।
  • शिक्षक की भूमिका: मार्गदर्शक की होती है। शिक्षक दार्शनिक, शिक्षक व निरीक्षक तीनों रूप में कार्य करते है।
  • इसमें थार्नडाइक के मुख्य नियमो (तत्परता, प्रभाव, अभ्यास) का प्रयोग होता है।
  • सोपान/चरण: (1) परिस्थिति का निर्माण करना, (2) योजना का चयन, (3) कार्यक्रम का निर्धारण करना, (4) कार्यक्रम का क्रियान्वयन करना, (5) मूल्याकंन, (6) लेखा जोखा करना।
  • सिद्धान्त: क्रियाशीलता, उद्देश्यपूर्णता, वास्तविकता, स्वतन्त्रता, स्वाभाविकता, नियोजन, उपयोगिता, समन्वय (रायबर्न द्वारा सबसे श्रेष्ठ)।
  • गुण: बालकों में क्रियाशीलता में वृद्धि, प्रजातान्त्रिक विधि, सामाजिक प्रणाली, खोज प्रवृत्ति का विकास, मनोवैज्ञानिक/बालकेन्द्रित विधि, प्रत्यक्ष अनुभव (स्थायी ज्ञान), नेतृत्व भावना का विकास, तर्क, चिंतन, मनन शक्तियों का विकास, आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
  • दोष: खर्चीली विधि, समय अधिक लगता है, पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण नहीं होता, प्रयोग के लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होती है।

अन्य शिक्षण विधियाँ (Other Teaching Methods)

विधिउपनाम/जनकमुख्य विशेषता/उपयोगिता
पाठशाला विधिव्यक्तिगत शिक्षा प्रणालीज्ञान का हृदय संगम कराना। मनन तथा श्रवण से कण्स्थीकरण पर बल। शिक्षक केन्द्रित, अमनोवैज्ञानिक।
पारायण विधि-वेद मंत्रों को बिना अर्थ समझे हुबहु याद करना।
मौखिक विधिपरम्परागत विधिअभिव्यक्ति या उच्चारण कौशल का विकास सर्वाधिक। विषय केन्द्रित, अमनोपैज्ञानिक।
वाद-विवाद विधि-किसी विषय पर विचार तथ्यो के साथ प्रस्तुत करना। सम्प्रेषण कौशल का विकास, आत्मविश्वास में वृद्धि।
सूत्र विधिप्राचीन विधिसंस्कृत में सर्वाधिक प्रयोग। बालकों को सूत्र रटाकर कार्य कराना। व्याकरण शिक्षण में अधिक प्रयोग।
व्याकरण विधि-भाषा का शुद्ध प्रयोग करना सिखाया जाता है। व्याकरण भाषा का प्राण कहलाती है। पतञ्जाल ने 'शब्दानुशासन' कहा है।
भाषण विधि-कठिन विषय को समझाने के लिए विस्तृत व्याख्या। अमनोवैज्ञानिक विधि, बालकों में निरसता आती है।
कथाकथन विधि-विषय को रुचिकर बनाने के लिए। नैतिक मूल्यों का विकास।
व्याख्यान विधि-शंका समाधान के लिए प्रयोग। विषयवस्तु की विस्तृत जानकारी, शब्द भण्डार में वृद्धि।
खोज/अन्वेषण विधिजनक: आर्मस्ट्रांग, हयुरिस्टिक विधि'स्वयं करके सीखने' पर बल। गेस्टाल्टवादियों के विचारों का अनुसरण। प्रथम प्रयोग रसायन विज्ञान में।
समस्या समाधान विधिजनक: सुकरात/सेंट थॉमसगेस्टाल्टवादियों की विचारधारा का अनुसरण। आधुनिक विधि।
खेल विधियाँजनक: हेनरी कॉल्डवेल कुकमुसीबत तथा बिना आंसुओं के शिक्षा देना। मनोवैज्ञानिक, बालकेन्द्रित विधियाँ।
साहचर्य विधिजनक: मारिया मॉन्टेसरीकार्ड व चित्रों के माध्यम से शिक्षा। छोटी कक्षाओं में उपयोगी।
मॉन्टेसरी विधिजनक: मारिया मॉन्टेसरीकर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों पर आधारित शिक्षा। 3-7 वर्ष के बालक के लिए।
किण्डरगार्टन विधिजनक: फ्रोवेलअर्थ: बच्चो का उद्यान। शिक्षक (माली), शिक्षार्थी (पौधा), विद्यालय (उधान)। 6 वर्ष तक के बालकों को शिक्षा।
डॉल्टन योजना/विधिजनक: हेलन पार्क हर्स्टसमय सारणी निश्चित नहीं होती। बालक रुचि के अनुसार पढ़ सकता है।
विनेटिका विधिजनक: डॉ कार्यटन वाशबनबालक को पूर्ण स्वतन्त्रता। विषयवस्तु को छोटे टुकड़ों में विभाजित।
डेकाली विधिजनक: डॉ ऑविड डेकालीव्यक्तिगत भिन्नता पर आधारित शिक्षा।
जेकपॉट विधिजनक: जेकपॉटबालक अपनी त्रुटियों का संशोधन स्वयं करता है।
बेसिक शिक्षा प्रणाली/वर्धाजनक: महात्मा गांधीहस्तकौशल आधारित शिक्षा देना (धातु, लकड़ी, मिट्टी, गत्ते, कताई बुनाई के काम)।

22. दल-शिक्षण उपागम (Team Teaching Approach)

  • प्रथम प्रयोग: हास्वर्ड विश्व विद्यालय।
  • प्रक्रिया: दल शिक्षकों का बनता है। दल एक ही विभाग के सभी शिक्षकों का, या एक ही संस्था के सभी शिक्षकों का, या अलग-अलग संस्था के एक ही विभाग का बन सकता है।
  • सोपान: (1) योजना बनाना, (2) व्यवस्था करना, (3) मूल्याकंन करना।
  • गुण: शिक्षकों की संख्यात्मक तथा गुणात्मक कमी को पूरा किया जा सकता है। बालकों को विशिष्ट ज्ञान दिया जा सकता है। अनुशासन बनाने में उपयोगी।
  • दोष: व्यवस्था में समय अधिक। बड़े कमरों की आवश्यकता। सभी प्रकरण ऐसे नहीं पढ़ाए जा सकते।

23. पर्यवेक्षण विधि (Supervised Study Method)

  • अन्य नाम: निर्देशित स्व अध्याय प्रणाली।
  • मेबल सिम्पसन ने 'हिकाल खण्ड का निर्माण' किया (समय सीमा - 60 मिनट)।
  • गुण: बालकों में स्व-अध्याय की आदत विकसित होती है। समस्या का समाधान बालक स्वयं ढूढ़ता है।

24. पर्यटन विधि/भ्रमण विधि (Excursion/Travel Method)

  • जनक: पेस्टालाजी। (प्रथम विचार प्रो. रैन द्वारा दिया गया)।
  • रविन्द्रनाथ टैगोर: "भ्रमण करते हुए सिखना मनोवैज्ञानिक विधि है"।
  • उपयोगिता: इस विधि में शिक्षण विधि, सहायक सामग्री, तथा विषय वस्तु तीनों एक में ही समाहित होते हैं।
  • गुण: बालक स्वयं सीखता है। प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त होते हैं। ज्ञान स्थायी होता है। मनोवैज्ञानिक व बालकेन्द्रित विधि है।
  • दोष: समय व धन अधिक लगता है। दुर्घटना की भावना अधिक। पाठ्यक्रम बाधित होता है।

25. प्रश्नोत्तर विधी (Question-Answer Method)

  • प्राचीन विधि
  • जनक: सुकरात (सुकराती विधि)। (प्लेटो भी)।
  • प्रश्नोत्तर विधि हमेशा प्रविधि (technique) रहेगी।
  • सोपान: (1) परीक्षण, (2) निरिक्षण, (3) अनुभव।
  • प्रश्नों के प्रकार: ज्ञाना आधारित, पुनर्रावृति, प्रस्तावना, बोधात्मक, विकासात्मक, समस्यात्मक, तुलनात्मक।
  • दोष: पाठ्यक्रम क्रमबद्ध रूप से पूर्ण नहीं हो पाता। शर्मीले बालकों के लिए अनुपयोगी। अमनोवैज्ञानिक व परम्परागत विधि।

26. अभिक्रमित अनुदेशन उपागम (Programmed Instruction)

  • प्रथम प्रयोग: सिडनी एल. पेशे द्वारा।
  • आधार: स्कीनर की ऑऑपरेन्ट कंडीशनिंग थ्यौरी।
  • प्रकार:
    1. रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन (बाह्य): स्कीनर। तत्व: उद्दीपन, अनुक्रिया, पूर्नबलन।
    2. शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन (आन्तरिक): क्राउडर। छात्र के व्यवहार का परिमार्जन किया जाता है।
    3. अवरोही अभिक्रमित अनुदेशन: गिलबर्ट। गणित की दक्षता मापने के लिए प्रयोग। इसमें आगमन-निगमन दोनों विधियों का समावेश होता है।
  • सिद्धान्त: पूर्नबलन का, लघु-पदों का, स्वगति का, स्वअभिप्रेरणा का, स्व परीक्षण का, स्व सक्रीयता का, तुरन्त प्रतिपुष्टि का सिद्धान्त।
  • सामान्य गुण: मनोवैज्ञानिक विधि, बालक केन्द्र में होता है, सक्रिय रहता है, सीखा गया ज्ञान स्थायी होता है।
  • वर्तमान में सर्वाधिक प्रचलित: कम्प्युटर सहाय अभिक्रमित अनुदेशन (जनक - लॉरेन्स स्टोलूरे)।

27. विश्लेषण विधि (Analysis Method)

  • प्रक्रिया: विषय वस्तु को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके शिक्षण कराया जाता है।
  • सर्वाधिक प्रयोग: गणित शिक्षण के लिए।
  • शिक्षण सूत्र: अज्ञात → ज्ञात, निष्कर्ष → प्रमाण, अनुमान → प्रत्यक्ष / तथ्य।
  • गुण: क्रियाशील विधि, ज्ञान की प्राप्ती धीमी होती है, किन्तु स्पष्ट व स्थायी होती है।

28. संश्लेषण विधि (Synthesis Method)

  • प्रक्रिया: छोटे-छोटे खण्डों को एक साथ मिलाकर या जोड़कर शिक्षण कराया जाता है।
  • प्रयोग: विश्लेषण विधि के बाद किया जाता है।
  • श्रेष्ठ विधि: गणित शिक्षण की श्रेष्ठ विधि मानी जाती है।
  • शिक्षण सूत्र: ज्ञात → अज्ञात, तथ्य → अनुमान, प्रमाण → प्रत्यक्ष।
  • दोष: रटने की प्रवृत्ति अधिक, निरसता अधिक आती है।

29. मस्तिष्क उहेलन विधि (Brainstorming Method)

  • जनक: एलेक्स एम. आशबर्न।
  • प्रक्रिया: बालकों के समक्ष जानबूझकर एक ऐसी समस्या छोड़ दी जाती है, जिससे दिमाग में उथल-पुथल हो सके।
  • सर्वाधिक प्रयोग: सामाजिक विज्ञान में।
  • अवस्थाएँ: उद्वलन की अवस्था, हरी बत्ती अवस्था, लाल बत्ती अवस्था।

शिक्षण सूत्र (Teaching Maxims)

ज्ञात से अज्ञात, सरल से कठिन, स्थूल से सूक्ष्म, विशिष्ट से सामान्य, अनुभव से मान्य, पूर्ण से अंश, अनिश्चितता से निश्चितता, विश्लेषण से संश्लेषण, तार्किकता से मनोवैज्ञानिकता, ज्ञानेन्द्रियों द्वारा शिक्षा, प्रकृति के द्वारा शिक्षा।


भाषा शिक्षण (Language Teaching)

भाषा का अर्थ एवं महत्व

  • भाषा शब्द संस्कृत भाषा की भाष धातु से निर्मित है।
  • डॉ रविन्द्रनाथ श्रीवास्तव के अनुसार, भाषा के द्वारा व्यक्ति अपने विचार अन्य तक भली भांती पहुंचा सकता है, तथा दूसरों के विचारों को समझ सकता है।
  • महत्व: मानव के विकास की आधाराशला, विचारों व भावों को अभिव्यक्त करने का माध्यम, सामाजिक जीवन की बुनियाद, इतिहास को सुरक्षित रखने में योगदान, मानव की पहचान, सभी विषय का आधार।

भाषा के विभिन्न रूप

  • मातृ‌भाषा: माँ के मुख से निकली हुई भाषा। बालक का सर्वाधिक नियंत्तव इसी भाषा से होता है।
  • परिनिष्ठीत भाषा: बोली से विकसित होकर बनी ऐसी भाषा जिसने सामाजिक व राजनैतिक रूप से अपनी एक पहचान बना ली।
  • अपभाषा: परिनिष्ठित भाषा का बिगड़ा हुआ स्वरूप।
  • राष्ट्रभाषा: वह भाषा जिसको राष्ट्र के अधिकांश लोग बोलते व समझते हों।
  • राजभाषा: प्रान्त स्तर पर राजकीय कार्यों में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा।
  • अन्य रूप: विद्यालय की भाषा, माध्यम भाषा, उपभाषा, विशिष्ट भाषा, मूल भाषा, गुप्त भाषा, कृत्तिम भाषा, मिश्रित भाषा, साहित्यीक भाषा, जीवित भाषा, मृत भाषा, सहायक भाषा, जातिय भाषा, सम्पूरक भाषा, परिपूरक भाषा, बच्चों की भाषा।

हिन्दी भाषा का संवैधानिक स्वरूप

  • विकास क्रम: संस्कृत (वैदिक → लौकिक) → पाली → प्राकृत → अपभ्रंश → शौरसेनी भाषा → हिन्दी।
  • हिन्दी भाषा भारोपीय भाषा (भारत व यूरोप की भाषा) है। हिन्दी शब्द फारसी भाषा का है।
  • संविधान: भाग - 17, धारा 343 - 351 तक।
  • धारा 343(I): संघ की राजभाषा हिन्दी होगी, तथा उसकी लिपि देवनागरी होगी।
  • धारा 343(II): हिन्दी की सहायक राजभाषा अंग्रेजी होगी।
  • घोषणा: 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया।
  • भारतीय संविधान में कुल 22 भाषाओं को दर्जा दिया गया है।
  • हिन्दी भाषा का मानक रूप - खड़ी बोली है।

भाषा की विशेषताएँ

  • यादृच्छिकता: मानी गई या स्वीकृत भाषा।
  • सृजनात्मकता: भाषा का सृजन होता है, कोई अन्तिम वाक्य नहीं होता।
  • द्वयात्मकता / अभिस्चना: (i) स्वनिम (ध्वनि), (ii) रुपिम (अर्थ)।
  • अंतरविनियमता: भाषा प्रयोग के लिए श्रोता व वक्ता का होना जरूरी है, तथा दोनों की भूमिका पर बदलना जरूरी है।
  • विस्थापन: भाषा से भूतकाल, वर्तमान काल तथा भविष्य काल तीनों के सम्बन्ध में एक साथ बात की जा सकती है।
  • विपवता: भाषा छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित होती है (जैसे ध्वनि-वर्ण-शब्द-वाक्य)।
  • भाषा अनुकरण से सिखी जाती है।
  • भाषा एक अर्जित सम्पत्ति है।
  • भाषा संयोगावस्था से वियोगावस्था की ओर चलती है।

भाषा सिखने-सिखाने की दृष्टियाँ

विशेषताभाषा अर्जनभाषा अधिगम
प्रक्रियाअवचेतन प्रक्रिया (व्यवहारिक)चेतन प्रक्रिया (निष्क्रिय, नियमबद्ध, सैदान्तिक)
स्रोतवातावरण सेव्याकरण से
ज्ञानव्याकरण से अनभिज्ञ नहीं होता हैव्याकरण से अनभिज्ञ रहता है
  • बहुभाषिक पृष्टिकोण: वायगोत्सकी का सिद्धान्त है कि भाषा सम्प्रेषण से तीव्र सीखी जाती है।

भाषा के प्रकार (मौखिक, लिखित, सांकेतिक)

विशेषतामौखिक भाषालिखित भाषासांकेतिक भाषा
स्वरूपमूल रूप, सरल रूप, प्राचीन रूपगौण रूप, कठिन रूप, नवीन रूपकठिन रूप
मूलभूत इकाईध्वनिवर्णसंकेत
स्थायित्वअस्थाई (उच्चारित होते ही समाप्त)स्थायी-
अनिवार्यताश्रोता की अनिवार्यता हैश्रोता की अनिवार्यता नहीं हैमूक बधिर बालकों के लिए उपयोगी

भाषायी कौशलों का विकास

  • क्रम (L.S.R.W.): (1) सुनना, (2) बोलना, (3) पढ़ना, (4) विखना।
  • मॉन्टेसरी के अनुसार (L.S.W.R.): (1) सुनना, (2) बोलना, (3) लिखना, (4) पढ़ना।
    • मॉन्टेसरी का कथन: "लिखने से पहले पढ़ना सिखाना मूर्खता के समान है"।
  • सबसे सरल कौशल: सुनना।
  • सबसे कठिन कौशल: लिखना।
  • सबसे महत्वपूर्ण कौशल: पढ़ना।
  • व्यवहारिक कौशल: सुनना, बोलना। सैदान्तिक कौशल: पढ़ना, लिखना।

1. श्रवण कौशल (Listening Skill)

  • यह सभी कौशलों का आधार माना जाता है। यह प्रथम व ग्राह्म (receptive) कौशल है।
  • शक्तियाँ: (i) अन्तर बोध शक्ति, (ii) धारण शक्ति, (iii) बोधन/अबबोध शक्ति।
  • महत्व: अध्ययन की आधारशिला, व्यक्तित्व निर्माण में उपयोगी, मौखिक अभिव्यक्ति में प्रविणता।
  • विकसित करने के आधार: (i) सामान्य श्रवण, (ii) चयनात्मक श्रवण।

2. मौखिक/कथन कौशल (Speaking Skill)

  • व्यवहारिक कौशल। प्रथम अभिव्यंजनात्मक कौशल।
  • महत्व: दैनिक जीवन, व्यावसायिक कार्यों, वार्तालाप, ज्ञानार्जन का माध्यम।
  • विशेषताएँ: स्वाभाविकता, स्पष्टता, वास्तविक भाषा का प्रयोग, शुद्धता, मधुरता, गतिशीलता, भावानुकूलता, प्रभावोत्पादकता, श्रोतानुकूलता।

3. वाचन कौशल/पढ़न कौशल (Reading Skill)

  • सोपान: (1) प्रत्यक्षीकरण, (2) अर्थ-ग्रहण, (3) प्रयोग।
  • प्रकार: सस्वर वाचन (व्यक्तिगत/सामूहिक), मौन वाचन (गंभीर/तीव्र)।
  • सस्वर वाचन: यति-गति के साथ। वाचन के दौरान पुस्तक व आँखों के मध्य दूरी 12 इंच होनी चाहिए।
  • मौन वाचन: बालक सर्वाधिक अर्थग्रहण इसी वाचन से करता है। सर्वाधिक निरसता इसी वाचन में आती है।
  • महत्व: गहन अध्ययन, थकान कम होती है, ध्यान केन्द्रण की क्षमता में वृद्धि, स्वाध्याय की आदत का विकास।
  • प्रारम्भ: मौन वाचन कक्षा-6 से प्रारम्भ कराया जाना चाहिए (या कक्षा-5 से कराया जा सकता है)।
  • दोष: क्षेत्रीयता का प्रभाव, अशुद्ध उच्चारण, अनुचित मुद्रा/गति, वाणी दोष, अर्थ विहीन पढ़न, विराम चिन्हों का अपूर्व ज्ञान।

4. लेखन कौशल (Writing Skill)

  • यह अर्थ से शब्द की ओर चलता है। सबसे कठिन कौशल। सबसे अन्त में विकसित होने वाला कौशल।
  • महत्व: विचारों को सुरक्षित रखने में उपयोगी।
  • तत्व: सुलेख, अनुलेख, श्रुतिलेख।

भाषा की प्रमुख विधाएँ (Language Genres)

विधास्वरूप/उद्देश्यप्रमुख विधियाँ
गद्य शिक्षणवृतबन्ध हीन संरचना। साहित्यकारों की कसौटी कहा जाता है। शब्द भण्डार में सर्वाधिक वृद्धि करता है।अर्थ बोधन विधि, व्याख्यान विधि, प्रश्नोत्तर विधि, संयुक्त प्रणाली।
पद्य शिक्षणस्वर, लय, ताल, छन्द, अलंकार की भूमिका अधिक। उद्देश्य: रसानुभूति कराना, कल्पना शक्ति का विकास।तुलना विधि, समिक्षा प्रणाली, अभिनय विधि (छोटे स्तर पर), व्यास विधि, गीत विधि, खण्डान्वय।
कहानी शिक्षणबालकों में जिज्ञासा उत्पन्न करता है। सामाजिक संस्कृति का विकास।चित्र प्रदर्शन विधि, अधुरी कहानी पूर्ति विधि, कथा-कथन विधि।
नाटक शिक्षणकिसी बड़ी घटना का प्रस्तुतीकरण। अभिव्यक्ति क्षमता का विकास, अभिनय कला में प्रवीणता।कक्षा अभिनय विधि (छोटे स्तर पर), रंग मंच विधि (बड़े स्तर पर)।
व्याकरण शिक्षणभाषा का अनुशासन, त्रुटियों आने को रोकती है। उद्देश्य: शुद्ध भाषा का प्रयोग करना सिखाना।आगमन विधि, निगमन विधि, समवाय विधि, भाषा संसर्ग विधि, सूत्र विधि।

पाठ्य पुस्तक (Textbook) और मल्टीमीडिया

  • उत्पत्ति: जर्मन भाषा के ग्रन्थ शब्द से उत्पत्ति। Book शब्द Bich (वृक्ष या वृक्ष की छाल) से हुई।
  • प्रकार: सूक्ष्म अध्यनार्थ पुस्तके (गहन अध्ययन के लिए), विस्तृत अध्यनार्थ पुस्तके (द्रुत वाचन के लिए)।
  • आन्तरिक विशेषताएँ: रोचकता, विविधता, मनोवैज्ञानिक, मौलिकता, शुद्धता, शब्दावली (15 से 80% तक शब्द पूर्व की कक्षा के होने चाहिए)।
  • महत्व: शिक्षण में क्रमबद्धता आती है। पुनरावृत्ति के अवसर मिलते हैं।
  • बहु‌माध्यम: प्रिंट मिडिया (अखबार, विश्वकोष), डिजिटल मिडिया (रेडियो, टेलीविजन, टेप-रिकार्डर), इन्टरनेट व कम्प्युटर मिडिया (CGI - कम्प्युटर जनरेटेड इमेजरी)।

मापन एवं मूल्याकंन (Measurement and Evaluation)

मापन और मूल्याकंन में अन्तर

विशेषतामापनमूल्याकंन
स्वरूपसंख्यात्मक (मात्रात्मक)संख्यात्मक + गुणात्मक
व्याख्यास्पष्ट व्याख्या नहीं कर सकताबालक के व्यक्तित्व की स्पष्ट व्याख्या कर सकता है
समयकम लगता हैअधिक लगता है
पक्षएकपक्षीय होता हैसभी पक्षों पर बल देता है
क्षेत्रसंकुचित होता हैव्यापक होता है

अच्छे मूल्याकंन की विशेषताएँ

  1. वस्तुनिष्ठता: जब किसी परीक्षण पर परीक्षक के व्यक्तिगत कारणों का कोई प्रभाव न पड़े। (कमी से स्थिर त्रुटि आती है)।
  2. विश्वसनीयता/शुद्धता: एक ही परीक्षक यदि परीक्षण को बार-बार जांचता है और अंकों में लगभग समानता बनी रहे। (कमी से चर त्रुटि आती है)।
  3. व्यापकता: सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को समाहित करना।
  4. विभेदकारिता: बालकों को योग्यता के अनुसार विभाजित करना।
  5. मानकता: समान अधिगम स्तर वाले बालकों को एक मूल्यांकन में समाहित करना।
  6. सन्तोष, सरलता, सुगमता, व्यवहारिकता, उपयोगिता, स्पष्टता।

मूल्याकंन का उद्देश्य/महत्व

  • निदान करना (समस्या के कारणों का पता लगाना), उपचार करना, निर्देश देना, परामर्श देना।
  • अधिगम स्तर, उपलब्धि का पता लगाना।
  • व्यवसायीक निर्देशन देना, प्रमाण पत्र देना, बालकों का वर्गीकरण करना, कक्षा उन्नति करना।

मापन के तत्व और प्रकार

  • तत्व: (1) विषयी (गुणों की पहचान करना), (2) प्रतीक (संक्रिय विन्यास निश्चित), (3) नियम/मान्यता।
  • मापन के प्रकार:
    1. भौतिक/मात्रात्मक मापन: शून्य बिन्दु का महत्व होता है, परिवर्तन सम्भव नहीं, प्रकृति निरपेक्ष, वस्तुनिष्ठता का गुण।
    2. मानसिक/गुणात्मक मापन: शून्य बिन्दु का महत्व नहीं होता है, परिवर्तन सम्भव है, प्रकृति सापेक्ष, आत्मनिष्ठता का गुण।
  • मापन के स्तर: नामित मापन (सबसे कम परिमार्जित), कृमित मापन, आतरित मापन, अनुपातिक मापन (सबसे परिमार्जित/अच्छा)।

मापन-मूल्यांकन की प्रविधियाँ

गुणात्मक प्रविधियाँ: संचित अभिलेख (महत्वपूर्ण रिकॉर्ड), एनक डाटल रिकार्ड/आकस्मिक निरिक्षण अभिलेख, घटना वृत्त विधि, पोर्ट-फोलिया (निश्चित समय में प्राप्त उपलब्धि का विवरण), आत्म प्रतिवेदन, अभिवृत्ति मापनी, समाजमिति विधि (मोरेनो), साक्षात्कार, प्रश्नावली विधि, व्यक्ति इतिहास, जाँच सूची, रेटींग स्केल।

मात्रात्मक विधियाँ (परीक्षा):

  • मौखिक परिक्षा: बिना पेपर पेन्सिल से ली गई।
    • गुण: तीनों पक्षों का मूल्याकंन।
    • दोष: लेखन कौशल का विकास नहीं, पक्षपात की सम्भावना।
  • लिखित परीक्षा (बंद अन्त): वस्तुनिष्ठ, मिलान-चिन्ह, रिक्त स्थान, सत्य-असत्य।
    • गुण: पक्षपात विहिन, विश्वसनीयता, वैधता।
  • लिखित परीक्षा (मुक्त अन्त): अति-लघुत्तरात्मक, लघूतरात्मक, निषन्धात्मक प्रश्न।
    • गुण: व्यक्ति विचारों की अभिव्यक्ति दे सकता है, व्यापकता अधिक, समझने पर बल देती है।
  • प्रायोगिक परीक्षा: करके सीखने पर आधारित।

सतत् एवं व्यापक मूल्याकंन (CCE)

  • मुख्य उद्देश्य: बालकों को परीक्षा के भय से मुक्त करना।
  • आधार: राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1986 (रचनात्मक व विकासात्मक मूल्यांकन की चर्चा) और NCF-2005 (सतत् व व्यापक शब्द जोड़े)।
  • CCE का अर्थ:
    • सतत्: ऐसा मूल्याकंन जो निरन्तर लिया जाए।
    • व्यापक: परीक्षा, पाठ्यक्रम, तथा सहशैक्षिक गतिविधियाँ (जैसे सामाजिक, मानसिक, स्वास्थ्य, कार्यावधि कौशल)।
  • CCE सत्र क्रियान्वयन: रचनात्मक मूल्याकंन (FA) और योगात्मक मूल्याकंन (SA)।
    • अनुपात: रचनात्मक (40) : योगात्मक (60) यानी 2:3
  • उद्देश्य: प्रगति की जाँच, निदान, उपचार, निर्देश, परामर्श, भविष्यवाणी, वर्गीकरण, कक्षा उन्नति, परिणाम पत्र देना।

उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching)

  • अर्थ: दोष की कमी दूर करना।
  • प्रक्रिया: निदानात्मक परीक्षण (समस्या के कारणों का पता लगाना) के बाद की प्रक्रिया उपचारात्मक शिक्षण (समस्या को दूर करना) है।
  • प्रकार: व्यक्तिगत, सामूहिक, विश्लेषणात्मक (वर्तमान अधिगम पर आधारित)।
  • अभ्यास माला: अभ्यास माला का निर्माण शिक्षण सूत्रों के आधार पर होगा और यह परिवर्तनशील होती हैं।
  • उद्देश्य: अधिगम सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करना, सर्वांगीण विकास, आत्मविश्वास की वृद्धि, हकलाने व तुतलाने वाले बालकों के लिए उपयोगी।
  • ध्यान रखने योग्य बातें: शिक्षण कार्य बालकों के स्तर से प्रारम्भ होना चाहिए। प्रगति की सूचना हर हफ्ते दी जानी चाहिए।

उपलब्धि परीक्षण (Achievement Test)

  • अन्य नाम: निष्पति परीक्षण, ज्ञानार्जन परीक्षण।
  • परिभाषा: एक निश्चित समय में बालक द्वारा प्राप्त ज्ञान तथा उसके कौशल की योग्यता को जांचना।
  • सोपान: (1) योजना का निर्माण, (2) योजना की तैयारी (प्री ट्राइ आउट, पायलट स्टडी), (3) परीक्षण का प्रशासन, (4) फलांकन, (5) परीक्षण का मूल्याकंन।
  • रचना के आधार पर प्रकार:
    • प्रमापीकृत/मानकीकृत: विशेषज्ञों द्वारा निर्मित, अधिक विश्वसनीय, नियम व सिद्धान्तों पर आधारित, क्षेत्र वृहद।
    • अपमापीकृत/अमानकीकृत: शिक्षकों के द्वारा निर्मित, कम विश्वसनीय, विद्यालय स्तर पर निर्मित, क्षेत्र संकुचित।
  • उद्देश्य: बालकों की वास्तविक स्थिति का पता लगाना (गेट्स), अधिगम की प्रभावशीलता का पता लगाना, बालकों के कठिनाई स्तर का पता लगाना, बालकों की समस्या का निदान, उपचार, परामर्श, निर्देश देना।
  • सबसे पहले मानकीकृत परीक्षण का प्रयोग राईस महोदय ने 1895 में 16000 बच्चों पर (कक्षा 5 के बालक, वर्तनी सुधार के 50 शब्द पर) किया था।

उपसंहार

यह पूरी सामग्री शिक्षण सिद्धांतों, पाठ योजना, मूल्यांकन प्रणालियों (CCE), और विभिन्न शिक्षण विधियों (जैसे आगमन, निगमन, प्रोजेक्ट, खोज) का एक विस्तृत ज्ञानकोश है। यह एक शिक्षण संदर्भ पुस्तक की तरह है जो सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों पहलुओं को शामिल करती है, जिसमें एडगर डेल का अनुभव शंकु, ब्लूम की टैक्सोनॉमी, और विभिन्न भारतीय शिक्षण विधियों के उल्लेख शामिल हैं। यह ज्ञानकोष एक शक्तिशाली उपकरण की तरह है—जैसे एक विस्तृत नक्शा, जो जटिल शैक्षिक परिदृश्यों में नेविगेट करने और गहराई से समझने में मदद करता है।

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