कविता मेरे वतन पर (Kavita Mere vatan per) मेरे भारत देश के लिए
कविता मेरे वतन पर (Kavita Mere vatan per) मेरे भारत देश के लिए
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कविता मेरे वतन पर (Kavita Mere vatan per) मेरे भारत देश के लिए |
कविता मेरे वतन पर
बुझा है जिस आँगन का चिराग
उस घर की दीवारें भी रोयी होंगी
खोये है जिन माँओं ने लाल अपने
न जाने वो माँये कैसे सोयी होगी ।
कतरा-कतरा बहे खून का अब
आखिर हिसाब देगा कौन ?
क्यों ना भड़के मेरे सीने में भी आग ?
आखिर कब तक कोई रहेगा मौन ?
छलनी किया जिन दहशतगर्दो ने सीना
अब उन्हें उनकी औकात दिखानी होगी ।
भूलना नहीं कर्ज ये देश जवानों का
बात ये उनके घर में घुस कर सीखानी होगी ।
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